बी. कॉम , वित्तीय प्रबंधन (financial management ) बुक नोट्स
नमस्कार,
मैं आज बी. कॉम के एक विषय वित्तीय प्रबंधन ( financial management ) के सम्पूर्ण नोट्स ले कर आया हु और आगे आता रहूँगा। इसलिए आप हमसे जुड़े रहे और पढ़ते रहे, साथ ही निचे दिए गए फॉलो बटन क़ो दबा कर हमें फॉलो कर ले।
सम्पूर्ण नोट्स
1:-वित्तीय प्रबंध के अर्थ ( meaning of financial management )
उत्तर :-
फाइनेंसियल मैनेजमेंट बिजनेस मैनेजमेंट का एक अंग है, जिसमें फेशियल एक्टिविटी को नियंत्रण करना होता है, यह दो शब्दों से बना है.
[ FINANCE + MANAGEMENT ]
वित्त ( finance ) :- किसी भी व्यवसाय को सही तरीका से चलाने के लिए हम जो भी पैसा व्यवसाय में लगाते है उसे वित्त ( finance ) कहते हैं.
प्रबंध ( management ) :- प्रबंध एक ऐसा काम है जिसके द्वारा हम अपना काम दूसरों से करवा सके या अपने काम का नियंत्रण कर सके, प्रबंध कहते है.
अर्थात वित्तीय प्रबंध ( finance management ) किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए हम व्यवसाय में जो भी पूंजी लगाते है, वित्त को कैसे और कहां यूज़ करना है यह नियंत्रण करना ही वित्तीय प्रबंध ( finance management ) कहते है.
परिभाषा :-
*वेस्टर्न एवं जाइगम : - "वित्तीय प्रबन्धन वित्तीय निर्णयन की वह प्रक्रिया है जो व्यक्तिगत मामलों एवं उपक्रम के लक्ष्यों के मध्य मेल स्थापित करती है"
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2:- वित्त प्रबंधन की प्रकृति और विशेषताएं (Nature and features of finance management )
उत्तर :-
1:-बिना फाइनेंस की व्यवसाय चलाया नहीं जा सकता है.
(Without finance the system cannot be run.)
2:- यह एक लगातार प्रक्रिया है क्योंकि इसमें हर वर्ष फाइनेंस लगाना होता है.
(It is a continuous process as it has to be financed every year.)
3:- यह एक विशाल प्रक्रिया है
(it's a huge process)
4:- यह एक मैनेजमेंट का अंग है.
(It is a part of management)
5:- इससे अपना व्यवसाये के परफॉरमेंस क़ो जान सकते हैं.
(With this, you can know the performance of your business.)
6:- इसे अन्य डिपार्टमेंट के साथ co-ordination करना चाहिए.
(It should be in co-ordination with other departments.)
7:- केंद्रीय प्रकृति.
(central nature)
8:- निर्णय लेने मे सहायक.
(Helpful in decision making.)
9:- यह सभी प्रकार के संगठन ( organization ) के लिए जरुरी है.
3:- वित्तीय प्रबंध के क्षेत्र:-
उत्तर :-
1:- वित्त प्राप्ति कि व्यस्था करना.
(To arrange for the receipt of finance.)
2:-वित्त कार्य का प्रशासन.
(Administration of finance work.)
3:-शुद्ध लाभ का आवनटन.
(Allocation of net profit.)
4:-वित्तीय नियोजन में सहायता करना.
(Assist in financial planning.)
5: - वित्तीय की आवश्यकता क़ो जानना.
( Knowing the financial requirement.)
6:- कैपिटल स्ट्रक्चर का निर्माण करना है.
(To build capital structure.)
7:- फाइनेंशियल का सोर्स को चुनना करना.
(Choosing a source of finance.)
8:-इन्वेस्टमेंट का पैटर्न को सेलेक्ट करना.
(Selecting the investment pattern.)
9:- नकद मैनेजमेंट करना.
(Cash Management.)
10:- प्रॉपर फाइनेंसियल कंट्रोल करना.
(take proper financial control)
11:-विकास या विस्तार करना.
(To develop or expand.).
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4:- वित्तीय प्रबंध के उद्देश्य ( objective of financial management )
उत्तर :-
वित्तीय प्रबंधन के उद्देश्यों को पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
1. लाभ अधिकतमकरण
2. धन अधिकतमकरण।
1:-लाभ अधिकतमकरण (Profit maximization) :-
1:- इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि अधिक से अधिक लाभ कामना.
2:- अधिक लाभ कमाने के लिए ये employees क़ो काम income देते है.
3:- ये कम से कम विज्ञान ( advertise ) करते है ताकि फ्री मे अधिक से अधिक लाभ कमा सके.
4:- ये रिस्क नहीं लेना चाहते है, इसलिए ये इन्सुरेंस नहीं करवाते है.
5:- ये कंपनी कम-कम सामान मंगाती है, और शोर्ट टर्म के लिए बेचती है,ये लॉन्ग टर्म के लिए इसीलिए नहीं बेचती ताकि वस्तु खराब न हो जाये और कोई नुकसान ना हो.
6:- वस्तु का अधिक दाम रखते हैं ताकि अधिक लाभ हो.
7:- यह risk नहीं लेते है.
2:- धन अधिकतमकरण ( wealth maximization):-
1:- यह आगे चलकर भविष्य में लाभ कमाना चाहते हैं.
2:- यह विज्ञापन बहुत अधिक करते हैं
3:-ये इंश्योरेंस भी करवाती है.
4:- यह रिस्क लेना चाहती है.
5:- ये कंपनी ढेर सारा वस्तु मांगवाती है, ताकि भविष्य में उसे धीरे-धीरे बेच कर लाभ कमा सके,जब उस वस्तु का दाम कम हो जाए.
6:- ये इन्वेस्ट करती है.
5:- रिस्क एंड रिटर्न्स इन फाइनेंसियल मैनेजमेंट
.जोखिम ( risk):-
जब भी हम कहीं पर अपना धन ( money ) का निवेश ( invest ) करना चाहते हैं पर भविष्य में वह हानि ( loss ) होने कि संभावना है तो उसे जोखिम (risk ) कहते है.
वापसी ( return):-
जब भी हम किसी स्थान पर अपना नकद ( कैश ) क़ो निवेश (invest) करते है, उस निवेश किये हु पैसे क़ो प्रिंसिपल मनी कहते है, और कुछ समय के बाद प्रिंसिपल मनी के साथ साथ व्याज ( interest ) भी मिलता है, तो इसी ब्याज मनी क़ो वापस ( return ) मनी कहते है.
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6:-प्रश्न :- टाइम वैल्यू ऑफ मनी क्या है?
उत्तर :-
टाइम वैल्यू ऑफ़ मनी का अर्थ यह होता है कि मनी का वैल्यू समय के आधार पर परिवर्तन होता रहता है इसमें जब किसी वस्तु कि वर्तमान में मूल्य ₹100 है और 10 वर्ष के बाद उसी वस्तु का मूल्य कम या ज्यादा हो जाये, उसे टाइम वैल्यू ऑफ़ मनी कहते है.
उदाहरण के लिए:-
मान लिया जाये कि कोई व्यक्ति वर्तमान में ₹100 देकर 5 किलो चावल खरीदता है
फिर वही व्यक्ति 10 वर्ष बाद जब ₹100 क्या वही चावल खरीदने जाएगा तो,उसे 5 किलो चावल नहीं मिलेगा बल्कि उसे 5 किलो से कम चावल मिलेगा,क्योंकि मनी का वैल्यू समय के साथ परिवर्तन हो चुका है इसे ही ' टाइम वैल्यू ऑफ़ मनी ' कहते हैं.
7:- प्रश्न :- लाभ अधिकतमकरण बनाम धन अधिकतमकरण (
Profit maximization vs wealth maximization)
क्या है?
उत्तर :-
लाभ अधिकतमकरण (Profit maximization) :-
1:- इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि अधिक से अधिक लाभ कामना.
2:- अधिक लाभ कमाने के लिए ये employees क़ो काम income देते है.
3:- ये कम से कम विज्ञान ( advertise ) करते है ताकि फ्री मे अधिक से अधिक लाभ कमा सके.
4:- ये रिस्क नहीं लेना चाहते है, इसलिए ये इन्सुरेंस नहीं करवाते है.
5:- ये कंपनी कम-कम सामान मंगाती है, और शोर्ट टर्म के लिए बेचती है,ये लॉन्ग टर्म के लिए इसीलिए नहीं बेचती ताकि वस्तु खराब न हो जाये और कोई नुकसान ना हो.
6:- वस्तु का अधिक दाम रखते हैं ताकि अधिक लाभ हो.
7:- यह risk नहीं लेते है.
धन अधिकतमकरण ( wealth maximization):-
1:- यह आगे चलकर भविष्य में लाभ कमाना चाहते हैं.
2:- यह विज्ञापन बहुत अधिक करते हैं
3:-ये इंश्योरेंस भी करवाती है.
4:- यह रिस्क लेना चाहती है.
5:- ये कंपनी ढेर सारा वस्तु मांगवाती है, ताकि भविष्य में उसे धीरे-धीरे बेच कर लाभ कमा सके,जब उस वस्तु का दाम कम हो जाए.
6:- ये इन्वेस्ट करती है.
8:-कंपाउंडिंग और डिस्काउंट क्या है
उत्तर :-
Compounding :- कंपाउंडिंग वह है जब किसी मनी का वर्तमान में वैल्यू जितना है वही मनी को फ्यूचर में देखे तो उसमे कुछ इंटरेस्ट जुड़ जाता है और उसका वैल्यू मे परिवर्तन होकर अधिक हो जाता है कंपाउंडिंग कहलाता है.
अर्थात,
वर्तमान में निवेश किया गया मनी का वैल्यू फ्यूचर में क्या होगा यह ज्ञात करना ही कंपाउंडिंग कहलाता जाता है.
इसे निकलने के लिए निम्न फार्मूला का उपयोग किया जाता है :-
[ Fv = pv ( 1+r/100)^n ]
Fv = future value.
Pv= present value.
r= rate
n= no of years.
Discounting :-
फ्यूचर वैल्यू से वर्तमान वैल्यू निकलना ही डिस्काउंटिंग कहलाता है.
मेरे पास फ्यूचर में ₹110 आने वाले हैं और मार्केट वैल्यू 10% है तो वर्तमान वैल्यू निकालने के लिए फ्यूचर वैल्यू मे काम करना होता है जिसे डिस्काउंटिंग कहते हैं.
इसे निकलने के लिए निम्न फार्मूला का उपयोग किया जाता है :-
[ Pv = Fv { 1/ ( 1+r/100) } ^n ]
Fv = future value.
Pv= present value.
r= rate
n= no of years.
UNIT-3
1:-पूंजी पर लागत किसे कहते है (cost of capital in financial management notes)
पूंजी की लागत (Cost of capital ):-
पूंजी पर लागत कि पढ़ने से पहले हमें यह पढ़ना होगा कि पूंजी ( capital ) किसे कहते है,
पूंजी ( capital ) कोई कंपनी जिसके पास पूंजी कि आवश्यकता है तो वह मार्केट से कैपिटल्स जूताता है मार्केट से कैपिटल जुटाने के लिए कंपनी बाजार में इक्विटी शेयर,प्रेफरेंस शेयर,डिवेंचर, बॉन्ड,सिक्योरिटी आदि बेचती है और इन्हे पब्लिक खरीदती है, जिसके बदले वे कंपनी क़ो कैश देती और जिससे कंपनी क़ो कैपिटल मिल जाता है, परन्तु कंपनी का भी दायित्व होता है कि इस पूंजी के बदले पब्लिक क़ो इंटरेस्ट दे,
अर्थात यह कहा जाये कि जब कंपनी, कैपिटल के बदले जो इंट्रेस्ट देती है उसे ही कॉस्ट ऑफ़ कैपिटल कहते है.
UNIT -5 .
1:- प्रश्न :-कार्यशील पूंजी किसे कहते हैं, उदहारण?
उत्तर :-
कार्यशील पूंजी (Working Capital ) :-
वर्किंग कैपिटल उस कैपिटल को कहते है जो किसी बिजनेस में दिन प्रतिदिन / रोजाना उपयोग किया जाता है वर्किंग कैपिटल कहलाता है.
इसे बैलेंस सीट के एसेट्स साइड दिखाया जाता है.
वर्किंग कैपिटल प्रत्येक कंपनी को निकलना आवश्यक होता है क्योंकि इसमें कंपनी का परफॉर्मेंस ज्ञात किया जाता है और साथ ही इससे यह पता चलता है कि कंपनी कैसा चल रहा है,
वर्किंग कैपिटल निकलने का फार्मूला :-
[ WORKING CAPITAL = CURRENT ASSETS - CURRENT LIABILITY ]
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CURRENT ASSETS :-
* cash in hand.
*cash at bank.
* sundry debtor.
*bill Receivable.
*stock.
CURRENT LIABILITY :-
*bank overdraft
* bill payable.
*O/s expense.
2:-इसके भी दो कांसेप्ट होते है :-
1:- Gross working capital.
[ Stock + Debtor + Bill Receivable + Cash in hand ]
2:- Net working capital :-
[ Stock + Debtor + Bill Receivable + Cash in hand - creditors - bill payable ]
3:-प्रश्न :- कार्यशील पूंजी को प्रभावित करने वाले कारक ( Factor affecting of working capital ).
उत्तर :-
कार्यशील पूंजी को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है,:-
1:-व्यवसाय की प्रकृति (Nature of business).
2:-संचालन का पैमाना ( scale of operating).
3:- व्यापारिक चक्र (Business cycle).
4:- मौसमी कारक ( Seasonal factor).
5:- क्रेडिट अनुमति ( Credit allow).
6:-कच्चे माल की उपलब्धता ( Available of row material).
7:- प्रतियोगिता का स्तर( Level of competition.)
8:- उत्पादित चक्र ( Produced cycle).
4:-प्रश्न :- प्राप्य प्रबंधन (Receivable management ) क्या है?
उत्तर :- Receivable managemen क़ो हिंदी में प्राप्य प्रबंधन कहते हैं, इसमें जब कोई फर्म या कंपनी वस्तु और सेवा की बिक्री करता है , तो उसे उस वस्तु या सेवा के बदले भुकतान पाने का अधिकार होता है, पर कभी कभी उसे भुकतान नहीं मिल पाता है, जिसके लिए फर्म एक क्रेडिट का भुगतान करता है तथा प्राप्य खाता बनाना है, अतः प्राप्य खाता बनाने की प्रक्रिया को प्राप्य प्रबंधन कहते है,प्राप्य प्रबंधन क़ो ट्रेड क्रेडिट कहते हैं
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( Receivable management is called receivable management in Hindi, in this, when a firm or company sells goods and services, it has the right to be paid for that goods or services, but sometimes it does not get the payment, for which The firm pays a credit and has to create an account receivable, so the process of creating an account receivable is called
Receivable management is called receivable management, it is called trade credit. )
5:-प्रश्न :- सूची प्रबंधन ( inventory management ) क्या है?
उत्तर :-
Inventory :- किसी कंपनी का प्रोडक्ट होता है,जिसमे जब किसी कंपनी द्वारा कोई वस्तु बनाया गया है या फिर बनाया गया वस्तु जो अभी तक बेचा नहीं गया है वैसे वस्तु क़ो इन्वेंटरी कहते है.
इन्वेंटर को तीन भागों में बांटा गया है:-
1-कच्चा माल( Raws material):-
वैसे वस्तु जिसमें कंपनी द्वारा बनाया बनाया जाएगा.
2:-कार्यरत (working process):-
ऐसी प्रोडक्ट जिसे बनाया जाना शुरू कर दिया गया है
3:-अंतिम वस्तु (finished goods ):-
वैसे प्रोडक्ट जो बन के तैयार हो चुका है
ये इन्वेएंट्री कंपनी का आय (income ) का श्रोत होता है, क्योंकि कंपनी इस वस्तु के बेचती है और बेचकर लाभ (profit ) कमाती है, इसीलिए कंपनी इसे प्रबंध ( manage ) करती है जिससे सूची प्रबंधन / इन्वेंटरी मैनेजमेंट कहते हैं.
6:-अल्पकालीन और दीर्घकालीन वित्त के स्रोत, ( long-term and short-term sources of finance )
लंबी अवधि के वित्त का स्रोत ( Source of long term finance ):-
1-- पूंजी बाजार (capital market ):-
इसमें कोई भी कंपनी,एजेंसी लम्बे समय के लिए पूंजी इक्कठा करते हैं या उधार लेती है लंबी अवधि के वित्त का स्रोत हैं.
2: पूर्वधिकारी अंश ( prefrence share ):-
पूर्वधिकारी अंश मे अंशधारियों को प्रति वर्ष एक निश्चित दर लाभान्स पाने का पूर्ण अधिकार होता है अर्थात साल के अंत में कंपनी को जितने भी लाभ हुआ है उसका एक निश्चित दर पाने का अधिकार है और साथ में कंपनी के समापन के समय अंशधारियों द्वारा दिया गया पूंजी की वापस पाने का भी अधिकार है.
3- समता अंश ( equity share ):-
इसमें अंशधारियों क़ो जो कि कंपनी में कुछ अंश पूंजी लगाया है, उसे कंपनी के जोखिम को भी उठाना पड़ता है साथ ही कंपनी के प्रबंध एवं संचालक को नियंत्रित करने का अधिकार है.
4:- ऋण ( loan ):-
यह कंपनी का एक ऐसा प्रलेख है जिसमें प्रमुख शर्ते होती है.
5:- देबेंचर :-
देबेंचर एक प्रकार का ऋण पत्र है जिसकी मदद से कंपनी के पास पूंजी की कमी हो जाती है तो वे देबेंचर जारी कर पूंजी जमा करती है और निवेशक उसे इसके बदले कुछ पैसा उधार देती है.
6:- अन्य साधन ( other source ):-
इसमें निम्न साधन आते है :-
A:- सहयोग निधि.
B:- विदेशो से ऋण.
C:- विदेशी वित्तीय संस्थाएं.
D:- आदि.
अल्पकालिक वित्त का स्रोत (Source of short term finance ):-
Source of short term finance का मतलब यह है कि जब फाइनेंस कम समय के लिए जैसे 1 साल से कम के लिए पूंजी लगाया हो शॉर्ट टर्म फाइनेंस कहलाता है.
1:- ओवरड्राफ्ट :-
ओवरड्राफ्ट को बैंक देता है इसमे बैंक क्रेडिट कार्ड देता है जो कि कुछ महीने के लिए होता है इसमें बैंक कुछ रकम देती है फिर बाद में उस रकम को हमें पे करना होता है ओवरड्राफ्ट कहालाता है.
2:- ट्रेड क्रेडिट:-
इसे वेंडर देता है कस्टमर को, इसमें कुछ रकम देता है और उस रकम को कस्टमर पे करता है
3:- आदि.
धन्यवाद
Thank you
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