भारत में जाति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए
भारतीयजाति व्यवस्था की विशेषताएं:-
जाति व्यवस्था की उत्पत्ति का सिद्धांत:-
(1) : परंपरागत सिद्धांत:-
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मणों का जन्म ब्रह्मा के मुख्य से, क्षत्रियो के बाह के बाहु से, वेश्या का जन्म उदर से और सूत्रों का जन्म ब्रह्मा के पैर हुआ था.
(2) : प्रजाति सिद्धांत:-
रिजले के अनुसार -" आर्य ने भारत मे द्रवीडॉ पर विजय प्राप्त करके उनसे दास की तरह व्यवहार करना शुरू किया आर्य और द्रविड़ प्रजाति एक दूसरे से अलग थी,
धीरे-धीरे रक्त की वीशुधता के आधार पर आर्य लोग स्वयं ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य जैसे वर्णों में बट गए, इसके बाद विभिन्न वर्गों के बीच प्रजातियां मिश्रण होने से जिन नये समूह के निर्माण हुआ व उन्हें को एक जाती के रूप में देखा जाने लगा.
(3): व्यवसायिक सिद्धांत:-
इस सिद्धांत के मुख्य नेसफिल्ड है नेट नेसफिल्ड के अनुसार :-
जाति व्यवस्था की उत्पत्ति में पेशा मुख्य कारण है, विभिन्न पेसा की पवित्रता एक दूसरे से अधिक और कम होने के कारण ही उनसे जुड़े जातियों की परिस्थिति भी एक दूसरे से उच्च और निम्न हो गई,
एक बार व्यवसाय के आधार पर जब जातियाँ का निर्माण हो गई तब उनके बिच विवाह खान पान और सामाजिक संपर्क के आधार पर विभाजन बढ़ने लगा.
(4) : ब्रहमान वादी सिद्धांत:-
इस स्थान को डॉक्टर जे. ऐस. घूरीया ने स्वीकार किया था, उनके अनुसार भारत में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति ब्राह्मणों की एक चतुर और सुनोयोंजीत योजना थी,
इसका उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों को पवित्रता के आधार पर उसे विशेष अधिकार देना था,
(5): धार्मिक सिद्धांत:-
यह सिद्धांत सोनारट द्वारा बताया गया, प्राचीन भारत में धार्मिक कार्यो को पूरा करने में अनेक तरह की सेवा की आवश्यकता होती है,
और इन आवश्यकता को पवित्रता और अपवित्रता के आधार पर उनके बीच उच्च नीच का क्रम पाया जाता है, पवित्रता और अपवित्रता के आधार पर ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या और शूत्र जाती का रंग सफ़ेद, लाल, पीला और काला बताया गया.
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