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ncert solutions for class 10 hindi sparsh chapter 1 saakhi pdf

Class =10,
Subject = Hindi
Chapter = 1 ( साखी )
All QUESTION SOLUTION NOTE



प्रश्न 1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है

उत्तर :- अपने तन को शीतलता-कबीर दास कहते हैं कि सबसे मीठी वाणी बोलनी चाहिए। इससे अन्य सुनने

वाले को बड़ा सुख मिलता है और अपने शरीर को भी शीतलता पहुंचती है। शीतलता से तात्पर्य

है-शान्ति व आनन्द। मधुर वाणी से अपने हृदय को शान्ति मिलती है और आनन्द की अनुभूति होती है।


 औरों को सुख-मीठी वाणी सुनने वाले के हृदय को भी सुख पहुंचाती है। हमें सुनने वाले के हित

में तथा अनुकूल बोलना चाहिए, तभी वह बात उसको सुख पहुंचाएगी। सुनने वाले के खुश हो जाने

पर बोलने वाले को सहज खुशी होती है। इसलिए सदैव ऐसी बात कहनी चाहिए जिससे सुनने वाला

खुश हो जाए।






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प्रश्न 2:-दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए

उत्तर :-(i) अहंकार का नाश-यहाँ पर प्रभु के ज्ञान की तुलना दीपक के प्रकाश से और अहंकार की तुलना अंधियारे से की गई है। कवि कहता है, जब तक हृदय में अहंकार है, तब तक हृदय में प्रभु को जानने का अज्ञान छाया हुआ है। जिस प्रकार अंधकार में कुछ भी दिखाई नहीं देता है, उसी प्रकार अभिमान के कारण प्रभु की सत्ता महसूस नहीं होती है।


(ii) ज्ञान का प्रकाश-जिस प्रकार दीपक के प्रकाश से सारा अंधकार दूर हो जाता है और सब कुछ दिखाई देने लगता है, उसी प्रकार ज्ञान का प्रकाश आ जाने पर प्रभु की सत्ता, उसकी कृपा, उसकी महिमा

महसूस होने लगती है। साखी में मैं शब्द अहंकार के लिए आया है।






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प्रश्न 3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे देख क्यों नहीं देख पाते?

उत्तर :-(i) ईश्वर को जानने के ज्ञान का अभाव-ईश्वर सर्वत्र व्यापक है, उसकी सत्ता कण-कण में अदृश्य रूप में विद्यमान है, परन्तु वह दिखाई नहीं देता है। उसकी सत्ता महसूस की जाती है। जिस प्रकार किसी

विषय को जानने के लिए उसका ज्ञान प्राप्त किया जाता है, उसी प्रकार ईश्वर को जानना व देखना भी एक विषय है। जब तक उसको जानने का ज्ञान न मिल जाए, तब तक हम सर्वत्र व्याप्त होते हुए

भी ईश्वर को नहीं देख सकते हैं।


(i) ईश्वर के ज्ञान की प्राप्ति-जब हमें ईश्वर का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तब हम उसको प्रत्यक्ष देख भी सकते हैं और उसके बारे में जान भी सकते हैं। वह सब जगह है, हमारे हृदय में है। लेकिन ज्ञान न होने के कारण मानव उसको मन्दिरों तथा तीर्थ-स्थलों में पूजा पाठ करके खोजता है, जबकि वह अपने अन्दर ही विद्यमान है।










प्रश्न 4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन यहाँ ‘सोना और जागना किसके प्रतीक हैं इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है स्पष्ट कीजिए।


उत्तर :- (¡) सुखी व दुखी-सांसारिक दृष्टि से संसार के सभी लोग सुखी और कबीर दास दुखी है। संसार के लोग भोग पदार्थों में मस्त हैं और इसी को सुख समझ रहे हैं, लेकिन कबीर लोगों की इस समझ को देखकर

दुखी है कि लोग वास्तविक सुख को क्यों नहीं समझ रहे हैं, जबकि भोग पदार्थों का सुख क्षणिक है और प्रभु का सुख स्थायी है।


(ii) सोना व जागना-जिसको प्रभु का ज्ञान नहीं है, वह संसार के भोग पदार्थों में मस्त है, जो स्वप्न की तरह है। इसलिए संसार की यह समझ ही सोना है। जो व्यक्ति प्रभु के ज्ञान से वास्तविक सुख को जान चुका है, सदा एक-सा रहता है, वह जागा हुआ है। वास्तविक सुख को न जानना सोना है और वास्तविक सुख को जानना जागना है।







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प्रश्न 5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर :-

(i) कबीर का मत-कबीर का कथन है कि अपनी निंदा करने वाले व्यक्ति को सदैव अपने पास रखना चाहिए। इससे बार-बार अपनी बुराई सुनने का अवसर मिलता है और हम बुराइयों को दूर करने का प्रयास करते हैं। ऐसा बार-बार होने से हमारी सभी बुराइयाँ मिट जाएँगी और हमारा स्वभाव निर्मल हो जाएगा।


(ii) कबीर का सुझाव-इसके लिए कबीर का सुझाव है कि निंदक व्यक्ति के लिए अपने ही आँगन में रहने के लिए घर बना देना चाहिए। ताकि वह बार-बार हमारे सामने हमारी कमियों को गिनाता रहे और हम उन्हें दूर करते रहें।







प्रश्न 6. ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ- इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है

उत्तर-

(i) संसार का पढ़ना-कबीर दास कहते हैं कि पुस्तकों को पढ़-पढ़कर संसार के लोग मरते जा रहे हैं। संसार की इस पढ़ाई से यदि हृदय में प्रेम उत्पन्न नहीं होता है तो यह पढ़ाई बेकार है। जिसमें सच्चा प्रेम नहीं है, वह व्यक्ति पंडित नहीं है, चाहे वह कितना भी पढ़ा-लिखा क्यों न हो।


(ii) पढ़े सु पंडित होइ-पीव का अर्थ है-पमरेश्वर से प्रेम। जिस व्यक्ति ने एक भी अक्षर प्रभु के प्रेम का पढ़ लिया है वही व्यक्ति पंडित कहलाता है। असली पढ़ना प्रभु का ज्ञान प्राप्त करना और उससे प्रेम करना है। प्रभु का ज्ञान हो जाने पर मनुष्य के हृदय में सबके प्रति सच्चा प्रेम पैदा हो जाता है।

इसलिए कवि यह संदेश देना चाहता है कि ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करो और सबसे प्रेम करो।







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प्रश्न 7. कबीर की उद्धृत् साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर जान सकते हैं-


(i) जन-भाषा-कबीर की साखियों में शास्त्रों की भाषा नहीं है। प्रत्युत जनता के मध्य बोली जाने वाली जन भाषा व लोक-भाषा है।


(ii) सधुक्कड़ी भाषा-कबीर एक साधु थे। उनकी भाषा रहस्यमयी है। कहते हैं-संतों की भाषा अटपटी,चटपट लखै न कोय। उनकी भाषा में स्वाभाविक व्यंजना होती है। इसलिए कबीर की भाषा सुधक्कड़ी

कहलाती है।(


ii) खिचड़ी भाषा-कबीर ज्ञान के प्रचार के लिए भ्रमण करते रहते थे, इसलिए उनकी भाषा में सभी भाषाओं का मिश्रण है। विद्वान उनकी भाषा को खिचड़ी भाषा कहते हैं।


(iv) भाव प्रधान भाषा-कबीर दास की छोटी-छोटी साखियों में गंभीर भाव भरे होते हैं, इसलिए उनमें  शब्दार्थ की अपेक्षा व्याख्या अधिक होती है।










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