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क्लास 10 हिंदी क्षितिज नौबतखाने की इबादत क्वेश्चन आंसर, / class 10 hindi naubatkhane mein ibadat question answer., / saquib ansari

क्लास 10 हिंदी क्षितिज 'नौबतखाने की इबादत' क्वेश्चन आंसर




प्रश्न 1:- शहनाई की दुनिया में डुमरांव को क्यों याद  किया जाता था?

उत्तर :-

शहनाई की दुनिया में डुमरांव को निम्नलिखित कारणों से याद किया जाता था:-

क :- डुमरा विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की जन्मभूमि है|


ख :- शहनाई बजाने में जिस रीड का प्रयोग होता है वह मुख्य  डुमराव के सोन नदी के किनारे पाई जाती है. यह रीड नरकट एक प्रकार की घास से बनाई जाती है.


ग :-इस समय डुमराव के कारण ही शहनाई जैसे वाद्य बजता  है इस प्रकार दोनों में गहरा रिश्ता है.






प्रश्न 2:- बिस्मिल्लाह खान का शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

उत्तर :-

शहनाई मंगलध्वनि का वाद्य है,  भारत में जितने भी शहनाई वादक हुए हैं उनमें बिस्मिल्लाह खान का नाम सबसे ऊपर है उनसे बढ़कर सुरीला शहनाई वादक और कोई नहीं हुआ, इसीलिए उन्हें सहनाई की मंगलध्वनि  का नायक कहा गया है.






प्रश्न 3:- सुशीर वाद्यॉ से क्या अभिप्राय है? शहनाई को सुशीर वाद्य की उपाधि क्यों दी गई है?


उत्तर :- सुशीर वाद्य का अभिप्राय है सुराख़ वाले वाद्य जिन्हे फूंक मारकर बजाया जाता है,ऐसे सभी छीद्र वाले वाद्य  में शहनाई सबसे अधिक मोहक और सुरिली होती है इसीलिए उन्हें सुषिर वाद्यों का शाह कहा जाता है





प्रश्न 4:- फटा सूर ना बक्शे | लुंगया का क्या है आज फटी है तो कल सी जाएगी,आशय स्पष्ट करें

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उत्तर :- जब एक शिष्य ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को फटी लुंगी पहनकर लोगों से मिलने पर टोका तब बिस्मिल्लाह खान ने कपड़ों को महत्व न देते हुए सूर की महत्ता दसाई, वे खुदा से यही मांगते थे कि उन्हें कोई विशेष चिंता ना थी,फटा कपड़ा तो सिला जा सकता है पर फटा सुर नहीं सीला जा सकता.





प्रश्न 5:- मेरे मालिक सुर बक्श दे | सुर में वह तासीर  पैदा कर दे की आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आंसू निकल आए,आशय स्पष्ट करें


 उत्तर :-बिस्मिल्लाह खान नमाज के बाद सजदे में खुदा से एक ऐसे सूर की माँग करते थे जिस में इतना असर हो कि वह आँखों से  अनगढ़ आंसू निकाल लाने में  कामयाब हो सके,यह आँशु सच्चे मोती की तरह होती है, इनके निकल आने पर सूर की परीक्षा हो जाती है,बिस्मिल्लाह खान सूर को खुदा की नीमत मानते थे.






प्रश्न 6:- काशी में हो रहे कौन से परिवर्तन बिस्मिल्ला ख़ां को व्यथित करते थे?


उत्तर :-

क :- पक्का महाल ( काशी विश्वविद्यालय से लगा इलाका ) से मलाई बर्फ  बेचने वालों का वहां से चले जाना.


ख : अब न तो वह देशी घी मिलता है और ना उनसे  बने कचोरी जलेबी, यह दोनों चीजें उन्हें बहुत अच्छी लगती थी.


ग :- सांगतियों के लिए गायकों के मन से आदर भाव का न रहना.


 घ :- रियाज को ना पूछना.






प्रश्न 7:-  पाठ में आए के प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते  है कि बिशमिला खां मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे?


उत्तर :-  बिस्मिल्लाह का हिंदू मुसलमान एकता के पर्याय थे, वे मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे,वे काशी के संकट मोचन मंदिर में हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित संगीत सभा में अवश्य सम्मिलित होते थे,वह बालाजी के मंदिर के नौबत खाने में शहनाई का रियाज नियमित रूप से करते थे, वे जीवन भर विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाते रहे इसी प्रकार वे  मोहर्रम के अवसर पर आठवीं तिथि शहनाई  खड़े होकर बजाते थे,

 वे दोनों में कोई अंतर नहीं करते थे.





प्रश्न 8:-  पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकती है कि वे वस्तीविक में एक सच्चे इंसान थे?


उत्तर :- बिस्मिल्लाह का वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे  उन्होंने काभी  धार्मिक कट्टरता तथा शूद्रता को बढ़ावा नहीं दिया, उन्होंने मुसलमान होते हुए भी कट्टरताको स्वीकार नहीं किया,

वह हिंदू मुसलमान दोनों को समान दृष्टि से देखते थे, वे  जिस श्रद्धा व आदर के साथ मंदिर में शहनाई बजाते थे,उसी आदर के साथ मोहर्रम के नौहा  बजाते थे,वह मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे, उन्होंने खुदा को कभी अपने लिए सुख-स्मृद्धि की  मांग नहीं की, वे तो सच्चे सुरु  की मांग करते थे.






प्रश्न 9:- मोहर्रम से बिस्मिल्लाह खा के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखें!


उत्तर :- बिस्मिल्लाह खान को मोहर्रम को उत्साह में ग्रहण लगाव था, मुहर्रम के दस दिन में वे  किसी प्रकार का मांगलवाध्या नहीं बजाते थे, न ही कोई राग रागिनी बजाते थे,आठवें दिन दालमंडी से चलने  वाले मुहर्रम जुलूस से पूरे उत्साह के साथ आठ  किलोमीटर रोते हुए नौहा बजाते चले जाते हैं!






प्रश्न 10:- बिस्मिल्लाह खान कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दें.


उत्तर :- बिस्मिल्लाह खाँ कला के अनन्य उपासक थे, उन्होंने 80 वर्षों तक लगातार शहनाई बजाय, उनसे बढ़कर शहनाई बजाने वाला भारत भर में अन्य कोई नहीं हुआ, फिर भी वह खुदा से सच्चे सुर की मांग करते रहे, उन्हें अंत तक यह लगा रहा की शायद अब भी खुदा उन्हें कोई सच्चा सूरदेगा,  जिसे पाकर वह श्रीताओं की आंखों में आंसू ला  देंगे, उन्होंने अपने को कभी पूर्ण नहीं माना,वे अपने पर झल्लाते भी थे की उन्हें अब तक शहनाई  को सही ढंग से बजाना नहीं आया, इससे पता चलता है कि वे सच्चे उपासक थे, वे दो चार राग गाकर  उस्ताद  नहीं हो गए, उन्होंने जीवन भर अभ्यास साधना जारी रखा.






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" महान सपने देखने वालो के महान सपने हमेशा पुरे होते है।

:-A. P. J Abdul Kalam

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