भारत के बाजार का सामाजिक संगठन:-
परंपरागत रूप से यहां का बाजार किस की ना किसी रूप में जाति व्यवस्था से प्रभावित रहा, उपनिवेश काल से पहले भारतीय समाज में कोई बैंकिंग व्यवस्था नहीं होने के बाद भी वैश्य और मारवाड़ी समुदाय में कुछ लोग बड़े स्तर पर कर्ज देने का काम करते थे,
यह काम इतना व्यवस्थित था कि इसे बैंकिंग व्यवस्था के समान ही माना जाता था,
व्यापार के कार्य मे हुंडी की प्रथा का प्रचलन था, हुंडी एक ऐसी दस्तावेज या वचन पत्र है, जिसमे किसी वस्तु को खरीदने वाले व्यक्ति विक्रेता को एक निश्चित राशि का भुगतान निश्चित समय पर करने का वचन देता है,
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